कई बाधाओं को पार किया , कई सपने भी साकार किया
कई हर्षित सफल क्षण , कभी  व्यथित विफल मन 
तदनन्तर करता हो उदासीन मनन - 
"क्यों भाग्य पर इठला कर भी जीवन तरसता रहता है
पल -पल कुछ पाने की चाहत में क्या मानव ख़ुद को छलता है"
फिर , क्या पाना ..... क्या खोना ..... ?

2 comments

  1. परमजीत सिहँ बाली // July 25, 2008 at 2:01 AM  

    बहुत सुन्दर भाव हैं रचना में।

  2. Indrajeet // September 11, 2008 at 4:49 AM  

    Philosophical hmmmmmmmmmmmmm but truth of life...