एक पथीक हैरान है !
वह लक्ष्या और पड़ाव की भीन्न्ता को लेकर परेशान है,
एक पथीक हैरान है !

लोगों ने जीसे लक्ष्या बताया ,
उसे उसने जीवन का एक पड़ाव ही पाया |

पग चंचल पर मन ज्यादा चंचल ,
डग तीव्रा तो मन की गती तीव्रतर है ,
क्या चलना केवल चलते जाना ही ,
उसके प्रश्नों का उत्तर है ?

अगणीत दीशायें उसे दीगभ्रामीत करे हैं,
हर पड़ाव पर वह असमंजस से घीरे है |
कीस दीशा जाए ?
हर ओर लक्ष्या नयनों से परे है |

फीर भी चलना है उसको ,
मान लक्ष्या वहाँ ,जहाँ गगन धरा को चूमे ,
वह भोला इस चक्रा में गोल- गोल ही घूमे |

घूमता जब तक नभ और धरा नीशा में नहीं घूल-मील जाते हैं,
घूमता तब तक हमराही भी थक कर नहीं सो जाते हैं |

तब वह बैठ अकेला मन में कुछ-कुछ गुनता है ,
टकटकी लगाये आसमान में ध्रुव तारा को चुनता है |

उसे दीशा सुनीश्चीत अभी करना है ,
क्यूँकी कल सुबह उसे फीर से चलना है |

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