आ मीत ! चल साथ उडें , आ हाथ मिला बिन पाँख उडें
आ चल ऐसी उडान उडें ,
जिसकी ना कोई विमा हो,जिसकी ना कोई सीमा हो ,
क्यों समझे हम छोटा ख़ुद को ,क्यों कहें ना हम खुदा ख़ुद को ,
जब वह बैठा सबके अन्दर है ,तब फ़िर क्या यह सात समंदर है ,
आ भर ऊर्जा ! क्षितिज को पार करें
आ हम उन्मुक्त गगन में नाद करें -
" आ मीत ! चल साथ उडें , आ हाथ मिला बिन पाँख उडें "

2 comments

  1. Shailesh // July 14, 2008 at 4:06 AM  

    Ashru kano ki baadh ki khoj mein jo nikla hai pathik use tumhare blog ki raah prapt ho.

  2. Utpal // July 14, 2008 at 4:19 AM  

    I presume this is a romantic piece. If I am right then I guess I understood the poem. If not then I can safely say it was awesome. Way to go buddy. You definitely need a romantic relationship. The poem makes it amply clear that you are yearning for romance but have not been able to find one.