निराले  निराला

काठ के पैर
ठूँठ - सा तन
गाँठ-सा कठिन गोल चेहरा
लम्बी उदास लकड़ी डाल से हाथ क्षीण
वह हाथ फ़ैल लम्बायनमान ,
दूरस्थ हथेली पर अजीब,
                          घोंसला ,
पेड़ में  एक मानवी रूप
मानवी रूप में एक ठूँठ ?
घोंसला उलझकर बदहवास
बेबस उदास
क्यों लटक रहा झूलकर ?
मैं काँप उठा वह दृश्य देख
यह असंदिग्ध वह मैं ही हूँ ।
  -निराला